ये दुनियाँ खिल उठेगी मुहब्बत से दोस्तो।
गज़ल
221……..2121……..1221…..212
दुनियाँ मे दुख ओ दर्द है नफरत से दोस्तो।
दुनियाँ ये खिल उठेगी मुहब्बत से दोस्तो।
बदहाल है किसान सियासत से दोस्तो।
हर आदमी है तंग रियासत से दोस्तो।
ये देश ही नहीं है ये दिल जान है मेरी,
इसके लिए लड़ेंगे कयामत से दोस्तो।
बिन बुद्धि औ विवेक से होगा नहीं भला।
सब काम बन सके हैं जहानत से दोस्तो।
कितना बड़ा हो झूठ मगर टिक न पायेगा,
होता है सामना जो हकीकत से दोस्तो।
बेचैनियों से मुक्ति अगर चाहते हो तुम,
मिलता है चैन रब की इबादत से दोस्तो।
प्रेमी न दूरियाँ हों हमारे भी प्यार में,
दिल को करीब लाओ मसाफत से दोस्तो।