ये दिल किसको दे दूं सुरेश, सभी तो भाढ़ खाते हैं
तुम्हारे खोखले वादों में, जरा भी दम नहीं दिखती
किस पर यकीन कर लूं मैं, वह सूरत भी नहीं दिखती
कभी लालच वो देते हैं, कभी मस्का लगाते हैं
जाति मजहब वर्ग भाषा का, नशा ऐंसा कराते हैं
आपस में लड़ाते हैं, फिर आंसू बहाते हैं
बड़े सयाने हैं ये नेता, अपनी कुर्सी बचाते हैं
नहीं सेवा से है मतलब , धन पद प्रतिष्ठा को आते हैं
ये दिल किसको दे दूं सुरेश, सभी तो भाड़ खाते हैं