ये जो तेरे बिना भी, तुझसे इश्क़ करने की आदत है।
ये जो तेरे बिना भी मुझे, तुझसे इश्क़ करने की आदत है,
मरुभूमि की तपिश को, बारिशों की राहत है।
ये जो मेरे कानों में गूंजती, तेरी अनसुनी आहटों की चाहत है,
अमावस के अंधेरों पर, जुगनुओं की इनायत है।
ये जो मेरे साँसों में घुली, तेरे गुम हुए नाम की आयत है,
तूफां में फंसी नाव को, पतवारों की ताक़त है।
ये जो तेरे लक़ीरों संग गुमी, मेरे लबों की मुस्कराहट है,
सितारों में तुझे तलाशती, मेरी आँखों की किस्मत है।
ये जो हर रात मेरी नींदों में, तेरे सपनों की शिरकत है,
रूठी हुई उस मंजिल को, राहों की मिन्नत है।
ये जो तेरी निःशब्द रवानगी, मेरी मुझसे हीं नफ़रत है,
मंदिरों की चौखटों पर, ख़ामोशी की शिरक़त है।
ये जो राख़ बनकर, हवाओं में फैली तेरी मोहब्बत है,
मेरी तन्हा शामों को, तेरे एहसासों की ज़न्नत है।