ये जुल्म नहीं तू सहनकर
(शेर)- मत सहनकर ये जुल्मो- सितम,रहकर ऐसे खामोश तू।
इन जालिमों को जमीदोंज कर, आँखों में भर आक्रोश तू।।
मत डर किसी पाप से, इन पापियों से लड़ने के लिए।
इन शैतान और हैवानों का, जल्दी से कर विनाश तू।।
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ये जुल्म नहीं तू सहनकर, तू भी एक मर्दानी है।
तेरी वीरता और विजय की, मिलती यहाँ कहानी है।।
ये जुल्म नहीं तू सहनकर ———————।।
कमजोर नहीं तू खुद को समझ,मजबूर नहीं तू खुद को समझ।
नहीं अबला तू खुद को समझ,अब तो सबला तू खुद को
समझ।।
तू जुल्मी से लड़ सकती है, तू भी तो झांसी रानी है।।
ये जुल्म नहीं तू सहनकर—————-।।
अपनी खामोशी तोड़कर, जुल्मी को दे मुहँतोड़ जवाब।
गुनाहगार को बख्श नहीं, पापियों का तू उतार नकाब।।
दुर्गा का रूप तू धारण कर, तू दुर्गा की निशानी है।
ये जुल्म नहीं तू सहनकर—————-।।
जिसने लुटा सम्मान तेरा,उनको तू माफ करना नहीं।
जिनको नहीं आई तुमपे दया, उनपे दया करना नहीं।।
मत शर्म कर करने में खत्म,जो हैवानी- शैतानी है।
ये जुल्म नहीं तू सहनकर——————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)