ये ज़िंदगी…..
🌷ग़ज़ल🌷
1212 1212 1212 1212
तमाम उम्र सह रही हज़ार ग़म ये ज़िंदगी।
सुना रही कहानियां यूँ हर क़दम ये ज़िंदगी।।
न आह में न अश्क में न गीत में न शेर में।
ये ग़मज़दे के साथ चलती बेरहम ये ज़िंदगी।।
हैं छल रहे सभी यहां सगा नहीं रहा कोई।
है तोड़ती तमाम ख़्वाब का भरम ये ज़िंदगी।।
उसूल कुछ हमारे और कुछ तुम्हारे भी तो हैं।
निभायें किस तरह भला बता करम ये ज़िंदगी।
चले डगर डगर मगर सफ़र में ही रहे सदा।
हरिक सवाल के जबाब में गरम ये ज़िंदगी।।
न तो कशिश दिलों में न चाहतों का दौर है।
ये दर्द देके कर रही है आंख नम ये ज़िंदगी।।
ये ज़िंदगी है नाव हीर नाख़ुदा ज़रा संभल।
लगी कगार पर कभी तो है ख़तम ये ज़िंदगी।।
ममता राजपूत हीर…✍️