ये ज़िंदगी क्या सँवर रही….
तप रही कभी पिघल रही
पल पल मुट्ठी फिसल रही
उस पार लगी या भँवर रही
ये ज़िंदगी क्या सँवर रही
कुछ ठोकरें कुछ नसीहतें
कुछ रंग बदलती सोहबतें
दुआ मिली कि क़हर रही
ये ज़िंदगी क्या सँवर रही
बिखर रही या निखर रही
मंज़िल पर या सफ़र रही
कहाँ कहाँ से गुज़र रही
ये ज़िंदगी क्या सँवर रही
लम्हों में बस रही कहीं
पल पल जीने को सही
हाय रोज़ाना तू मर रही
ये ज़िंदगी क्या सँवर रही
मुकम्मल या रही अधूरी
फ़साना कि हक़ीक़त पूरी
थी किताब या बस कवर रही
ये ज़िंदगी क्या सँवर रही
रेखांकन।रेखा