ये जनवरी दिसम्बर
ये जनवरी दिसम्बर
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दो छोर यूँ तो साल के ये जनवरी दिसम्बर
साल पूरा बीत जाता इनके अंदर अंदर
वैसे दिसम्बर जनवरी के घर मिले जुले हैं
पर हाथ दोनों के नहीं वैसे कभी मिले हैं
दूर से देखो तो लगते ये बड़े करीब हैं
लेकिन इन दोनों के ही कितने अलग नसीब हैं
यदि पास दिसम्बर के खट्टी मीठी यादें हैं
तो जनवरी के पास सपनों की बारातें हैं
ओढ़कर उदासी चला जाता है दिसम्बर
मगर जनवरी आती है दुल्हन सी सजधज कर
फेयरवेल दिसम्बर को देते हम आँसू भरकर
और जनवरी गले लगाते कहकर हैप्पी न्यू ईयर
13-12-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद