#ये गाँव की गलियाँँ
ये खेत और ये खलिहान,
ये गांव की गलियां और ये पगडण्डीयाँ।
ना चाहते हुए भी,
मुझे बरबस ही याद आ जाया करती हैं।
याद आए भी क्यूँ ना,
इनसे रिश्ता जो ठहरा मेरा पुराना।
जादू है इन गलियों में,
तभी तो दुर रहके भी हूँ,
मैं इन गलियों का दीवाना।
इन घने जंगलों से,
इन पेडोंं से मुझे बेहद प्यार है।
इनकी टहनियों में बैठकर,
न जाने कितने ही नग्में गाएँ हैं मैंनें और
न जाने कितने ही तरानो को,
अपने अल्फाजों से पिरोया है।
न जाने कितनी ही धुनोंं के साथ
मटरगश्तीयाँ की हैं।
दुर मैं चाहे इनसे कितना भी रहूँ।
इनकी यादें, इनकी मधूर स्मृतियां
मेरे जेहन में आज भी तरोताज़ा है।
इनको भुल जाने की ज़हमत,
मैं कभी नहीं उठाना चाहता।।
मौलिक व स्वरचित
रचनाकार:-Nagendra Nath Mahto.