ये खामोशियां
खामोशी
न कह कर भी
बहुत कह
जाती है खामोशी
दर्द दिल में
समेटे रहती है
मुस्कान चेहरे
पर रहती है
खामोशी
नहीं होती
गर मेरे दोस्त
राज छिपे न होते
दिल में
सहन करने की
ताकत रखती हैं
ये खामोशियां
कह देते तो
ये होती
फरामोशियां
अब चुप
न सहन जाता है
अब चुप
रहा न जाता है
कुछ तो बोल दे
दिले – ऐ – जिगर
बना रही है पागल
ये खामोशियां
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल