ये क्या जगह है दोस्तो
यादों की बारीक
रोशनी में ठहरा गाँव,
बातो के दरमियाँ
गुजरता था दिन,
बदली बदली जमाने
की तस्वीर है
गाँव,, जैसे पूरी की
पूरी परम्परा,
एहसास- जादू सरीखा
शहरों के करीब आकर
गाँव की शक्ल- सूरत- सीरत
सब की सब बदली
कहा रहे पहले जैसे
रंग ढंग कस्बो और शहरों के
न रहे पहले की
तरह मेले ठेले
न ठहरकर दम लेने,
गपशप करने,
सुख दुःख,हँसी खुसी
के अफसाने बांटने ,
पुराने ठिकाने भी न रहे
बाकी है बस याद
बनती जा रही है
नई, अनूठी चौपाल।।