ये क्या कर रहे हो मियां
मुंह में दांत नहीं है
पेट में आंत नहीं है
चित तुम्हारा फिर
भी क्यों शांत नहीं है
खाना चाहते हो
अभी भी हड्डी तुम
अब ये तो कोई
अच्छी बात नहीं है।।
अपना हाज़मा देखे बिन
उम्र का तकाज़ा किए बिन
ढूंढ रहा है आज भी किसे
अपना चश्मा लगाए बिन
सफेद बाल काले करवा दिए
गालों के गढ़े भी भरवा दिए
कैसी लगी है ये अगन उसको
जो आंखों से चश्मे भी हटा दिए।।
ये क्या कर रहे हो मियां
बुढ़ापे में उछल रहे हो मियां
जो टूट गई एक भी हड्डी
इस उम्र में न जुड़ेगी मियां
घुटने भी ज्यादा दर्द करेंगे
जो बैसाखी छोड़ोगे मियां
थोड़ा धीरे चला करो अब
क्या हाथ पैर तोड़ोगे मियां।।
चाहत है अभी भी अनार की
केले खाने की उम्र है मियां
अच्छी नहीं है ये चाहत अब
हमको तुम्हारी फिक्र है मियां
साठ की उम्र हो गई है अब
फिर भी क्यों धड़के है जिया
हरिद्वार जाने की उम्र में भी
याद आता है तुमको पिया।।