ये कैसी लग्ज़िश है।
ये कैसी लग्ज़िश है उनके कदमो में।
कि दो कदम उन का चलना मुहाल है।।1।।
घेरे है हमको हमारे ही तन के साये।
अब खुद से ही खुद के कई सवाल है।।2।।
आज फिर तुम घर देर से आये हो।
कुछ बोलना नहीं वरना रखे बवाल है।।3।।
हर वक्त फ़िक्रमंद रहते है हम उनके।
उन्हें ना हमारा इक पल का ख्याल है।।4।।
दर्द दे कर हमको ज़ालिम हंसता है।
उनको अपनी खता पर ना मलाल है।।5।।
क्या आये हम तुम्हारी मदद को अब।
जब ज़िंदगी खुद में शिकस्ता हाल है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ