ये कैसी आज़ादी – कविता
शीर्षक – ” ये कैसी आज़ादी ”
बरस बीते…… आज़ाद हुए पर,
ख़्य़ाल अभी तक गुलाम बने हैं ।
आज़ाद मुल्क के बाशिंदे हम ,
क्यों ऱाम, रहीम, सतऩाम बने हैं ।।
ज़़ात-प़ात में बाँटा ख़ुद को ,
क्यों धर्म के ठेकेदार बने हैं ।
मुल्क को समझें घर अपना ,
क्यों यहां किरायेदार बने हैं ।।
भूख से कऱाहता बचपन,
सुनस़ान सड़क पर सोत़ा है ।
रोत़ा बिलखता भविष्य देख़ ,
भ़ारत माँ को दुख होता है ।।
ये कैसी आज़ादी जिसमें ,
मौन और नादान बने हैं ।
पत्थर हुए जज़्बात हमारे ,
क्रूर और हैवान बने हैं ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इकबाल कालोनी
इंदौर , मध्यप्रदेश