ये कैसा मजदूर दिवस
****** ये कैसा मजदूर दिवस ******
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कैसे मनाएं आया आज मजदूर दिवस,
मजबूर को कैसे कह दें मजदूर दिवस।
दिन भर खूब वो खून पसीना बहाता है,
दो टूक रोटी भी कभी कहाँ खा पाता है,
भूखे पेट है सोये ये कैसा मजदूर दिवस।
मजबूर को कैसे कह दें मजदूर दिवस।
नंगे बदन को कपड़ा भी न ढक पाता है,
कड़ी गर्मी में काली चमड़ी जलाता है,
सर्दी में ठिठुरता ये कैसा मजदूर दिवस।
मजबूर को कैसे कह दें मजदूर दिवस।
टूटी फूटी दीवारें , छत टपकता रहता है,
चूल्हा चौका छोड़ आँगन न बच पाता है,
तंग गली सा तंग ये कैसा मजदूर दिवस।
मजबूर को कैसे कह दे मजदूर दिवस।
कब आई होली,दीवाली कुछ पता नहीं,
गरीबी में बेहाल खुद का अता पता नहीं,
शोषित है जीवन ये कैसा मजदूर दिवस।
मजबूर को कैसे कह दें मजदूर दिवस।
सावन हरे न भादों सूखे सा है हाल सदा,
दुखों में खुशियों को है ढूँढता रहता सदा,
कर्जो में डूबा रहता कैसा मजदूर दिवस।
मजबूर को कैसे कह दें मजदूर दिवस।
क्या कभी अच्छे भी दिन भी आ पाएंगे,
खातों में पन्द्रह लाख झट से पड़ जाएंगे,
ऐसे दिनों की राह ताकत मजदूर दिवस।
मजबूर को कैसे कह दें मजदूर दिवस।
मनसीरत खुदा के घर में क्यों अंधेर है,
श्रमिक जीवन मे लिखी कोई सवेर है,
सहरों से है लिप्त कैसा मजदूर दिवस।
मजबूर को कैसे कह दें मजदूर दिवस।
कैसे मनाएं आया आज मजदूर दिवस।
मजबूर को कैसे कह दें मजदूर दिवस।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)