ये कैसा धुँआ हो गया
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१२२ १२२ १२२ १२ सुशील यादव ….
शहर में ये कैसा धुँआ हो गया
कहीं तो बड़ा हादसा हो गया
किसी जिद, न जाने, वहां था खड़
शिनाख्त, मेरा चेहरा हो गया
हुकुम का गुलाम, जिस की जेब हो
शह्र का वही, बादशा हो गया
हमारे वजूद की, तलाशी करो
ये खोना भी अब, सिलसिला हो गया
ये चारागरों जानिब खबर मिली
मर्ज ला इलाज-ऐ- दवा हो गया
अदब से झुका एक, मिला सर यहाँ
‘सलीका’ ‘सुशील’ का , पता हो गया
सुशील यादव