ये कैसा गणतंत्र
पूछेगा इतिहास कभी जब
क्या ज़वाब दे पाओगे।
मानवता को शर्मशार कर
क्या आगे बढ़ पाओगे।।
सहनशक्ति की सीमा लांघी
सज्जनता को छोड़ दिया।
गौरवमयी क्षणों में तुमने
स्व विवेक को भुला दिया।।
देते थे भगवान का दर्ज़ा
जिस किसान के पेशे को ।
काला धब्बा लगा गया वह
कर अपमान तिरंगे का।।
देश की गरिमा कहाँ बचेगी
गर ये कृत्य दिखोगे।
पूछेगा इतिहास कभी जब
क्या जवाब दे पाओगे।।