‘ये कैसा खुमार’
‘ये कैसा खुमार
ये
कैसा खुमार है ?
भावों का
ताना-बाना
पहनने को
आतुर शब्द
कलम का
मनुहार
कर रहे हैं
और
अंतस से
अभिसिंचित हो
रचना का उपहार
दे रहे हैं।
मैं बावली सी
सुधबुध बिसराकर
पन्ने भर रही हूँ
नहीं जानती थी
कि मैं स्वयं ही
खुद की पीड़ा
हर रही हूँ।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)