ये कैसा ईश्वर?
ये कैसा ईश्वर है जो अपनी ही,
सुनना चाहे जयकार,
सुने बिना ये प्रशंसा अपनी,
कर न सके किसी का उद्धार,
एक पल में चला आया था जो,
सुन के द्रौपदी की पुकार,
क्यों आज किसी भी द्रौपदी की,
ये सुन न सके चित्कार,
न जाने कितनी द्रोपदियों का,
यहां रोज़ है होता बलात्कार,
कलयुग के हाथों बिका है शायद,
ये ईश्वर बेहद कमज़ोर है,
इसीलिए सुनाई देता नहीं,
इसको कोई भी शोर है,
संदेह और प्रश्नों के घेरे में,
फंसा तुम्हारा अस्तित्व है आज,
इतिहास की भांति वर्तमान में आके,
बेबस द्रोपदियों की बचाओ लाज,
हो ईश्वर अगर तो सामने आओ,
तनिक तो अपना बाहुबल दिखाओ,
ये “अंबर ”तो नितांत नास्तिक है,
बाकी दुनिया को ना यूं बरगलाओ।
कवि-अंबर श्रीवास्तव