ख़ामोशी
खामोशी भी कुछ कहती है, सिर्फ अंदाज़ जुदा होता है।
सुनाई देता नही कानों से, वह अल्फ़ाज़ जुदा होता है।।
कलम खामोशी से कुछ कहेगा, कुछ शब्दों में छूपा लेगा।
कागजो में अपने स्याह लहु को, चुपके चुपके खपा देगा।।
लोग बामुराद पढ़ सुनकर के जिसे, वाह वाह कर उठेंगे।
उस कोरे कागज को सवारने में, यह जिंदगी गवा देगा।।
किसी का दर्द समेट लेगा यह, किसी का इश्क़ पालेगा।
किसी की गलतियाँ ताउम्र, किसी की जेहन को सालेगा।।
किसी की खुशियों का बन पर, ऊँचा उड़ेगा आकाश में।
किसी की कल्पनाओं में अक्सर, नित नए रंग ढाल देगा।।
अपने खलाफ़त की बातें सुन, हम रहते खामोश सदा।
यह जानते हैं कि वक्त उन्हें, उसका करारा जबाब देगा।।
देख कर खामोश तुझको, अब मैं भी होता खामोश हूं।
आंख पिघल कर तेरी खुद, तुझे मेरी याद दिला देगा।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १८/०८/२०१८)