ये आँखे
ये आँखे
कितना रोती है ये आँखे।
कितना चैन खोती है ये आँखे।
टूट गये सारे वो रिश्ते दरिमियांन हमारे।
फिर भी कितने मोती पिरोती ये आँखे।।।
दामन भी कितना सुखायेगी ये धूप हर बार मेरा।
कितना दामन गीला करती है ये आँखे।।।
टूट गयी उम्मीद उनके लौट आने की उम्रभर के लिये।
फिर भी सपने क्यों सजाती है ये आँखे।।
आख़री सवाल पूछते ही बिखर गये सब अरमान।
फिर न जाने किसको ये देखती हैं आँखे।।।।
मन का वहम भी हो गया अब खत्म।
चलो फिर भी कब तक इंतजार करती है ये आँखे।।।
रचनाकार
गायत्री सोनु जैन
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