ये अधूरा इश्क हमें रास न आया…
आधा चांद आसमान पर ,
शोभा दो देता है ।
आधा ढका रूप भी गोरी ,
का सुहाना लगता है ।
आधा भरा पैमाना भी ,
कुछ कुछ नशा देता है ।
यह सब मन को पूर्ण संतुष्ट ,
तो नहीं करते ,मगर करते तो है ।
मगर आधा अधूरा प्रेम ,
मन और जीवन को पूर्णतः संतुष्ट ,
नहीं करता ।
तुम ने प्रतीक्षा तो करवाई ,
पूर्ण एक मास की ,
और देने आए हमें बस एक ,
पूर्ण मासी तक का प्रेम।
रास लीला रचाई तुमने ,
बस कुछ पल की ।
हम आनंदित तो हुए ,
मगर पूर्णतः संतुष्ट न हुए ।
क्योंकि उसके पश्चात तुम ,
हमें अनिश्चित अंतराल का ,
लंबा इंतजार दे गए ।
हमें तुमने जुदाई की
काफी लंबी अंधेरी गुफा में,
डाल दिया ।
कुछ पल की चांदनी रात और ,
इतनी लंबी वियोग की उम्र ।
यह तुमने कैसा अन्याय किया ।
कान्हा !! तुमने हमें आधा प्रेम देकर ,
अंतहीन प्रतीक्षा में क्यों डाल दिया?
बोलो कान्हा ! तुमने ऐसा क्यों किया?