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17 May 2021 · 1 min read

ये अकेला पन

मुझे अब ये जीवन, रास नहीं आता।
सब कुछ बिखरा हुआ है, जो समेटा नहीं जाता ।।

घंटो सा सफर लगता है, अब चंद दूरी का भी।
सफर- ए – ज़िन्दगी का, अब गुजारा नहीं जाता ।।

तन्हाइयां आती है, हर शाम मेरे हिस्से में।
अब मुझसे बेवजह और, मुस्कुराया नहीं जाता ।।

सपने दफन कर, लौट आया हूं मैं घर वापस।
इस अजनबी शहर में अब, एक पल भी रहा नहीं जाता।।

Language: Hindi
448 Views
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