यूंही सावन में तुम बुनबुनाती रहो
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तुम यूंही सदा, मुस्कुराती रहो
तुम यूंही सदा, गुनगुनाती रहो
दूर तुमसे रहे, गम – ए – मौसम जुदा
यूंही सावन में, तुम बुनबुनाती रहो |
हो मोहब्बत भरा आशियाना तेरा
मेरे जैसा ना कोई, दीवाना तेरा
बंद रहने दो आँखें, ये जादू भरी
देख लेने दो जीभर, मुझे दो घड़ी
सुनु तारीफ तेरा ही, मैं हर तरफ
यूंही जुल्फें हवा में, उराती रहो | यूंही सावन…..
ऐसा लगता मुझे क्यों, कहीं ना कहीं
चांद में दाग है, पर तुझमें नही
जैसे फुर्सत में, रब ने बनाया तुझे
दुआ करता हु, रब खुशियों से भरे
हो सलामत तेरा, जिंदगी का सफर
तुम यूंही सदा, जगमगाती रहो | यूंही सावन……
✍️ बसंत भगवान राय