यूक्रेन रूस युद्ध भारत को सीख
रूस और यूक्रेन युद्ध से सीख
यूक्रेन-रूस जहां जंग चल रही है, कभी सोवियत रूस का हिस्सा था, वहां रहने वाले लोग भी एक ही संस्कृति-धर्म को मानने वाले हैं। अमेरिकी दखलंदाजी ने सोवियत रूस को तोड़ दिया एवं वहां बाहरी लोग भी रहने आ गए, जो रूस विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं, नाटो के समर्थक हैं।
रूस अपनी सीमाओं पर बाहरी दबाव नहीं चाहता, अपनी अस्मिता अपना खोया हुआ भूभाग बचाना चाहता है। नाटो में यूक्रेन के शामिल होने से रूस स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है, यही जंग का कारण है।
रूस एवं यूक्रेन-बेलारूस के निवासी एक ही संस्कृति धर्म भाषा आदि के लोग हैं, लेकिन अपने ही भाई याने रूस से दुश्मनी एवं यूरोपीय देशों नाटो से प्रेम ? परिणाम जंग याने भाईयों की बर्बादी, यूरोपीय देश उकसाने का काम कर रहे हैं, लेकिन वांछित मदद नहीं कर रहे,उनका हथियार बेचने का धंधा अच्छा चल रहा है, दुनिया कमजोर हो और हमारी दादा गिरी चलती रहे,तो असली विलन कौंन?
कई मायनों में भारत को खास कर रक्षा मामलों, हथियार, ऊर्जा, आर्थिक मामलों इत्यादि में आत्मनिर्भरता से जीना सीखना होगा। किसी भी तरह की आकस्मिक परिस्थितियों से निपटने सक्षम एवं मजबूत रहना होगा।
आखिर में कभी परेशान होकर, जो हमारा ही भूभाग है, जहां से हम दशकों से आतंकी गतिविधियां झेल रहे हैं? एक तरफ जबतब एक पड़ोसी हमारे भूभाग को हथियाने की कोशिश में सीमा पर तनाव करता रहता है,कब हमें भी जंग करनी पड़ जाए?
तब हमें भी शायद जो रूस अपनी अस्मिता के लिए लड रहा है, लोग उसे विलन बता रहे हैं? हो सकता है जब हम अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ें, तब हमें भी विलन बताया जाए। हमारे ऊपर भी तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए जाएं, स्वार्थ के हिसाब से गुटबाजी चलें, कुछ कहा नहीं जा सकता, दुनिया अपने अपने हित के हिसाब से चलती है,सच क्या है, इससे किसी को सरोकार नहीं।
कुछ भी हो, हमें हर मोर्चे पर तैयार रहना होगा, यही समय की मांग है।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी