यूं ही रास्तों पे परेशान करती है
यूं ही रास्तों पे परेशान करती है तेरी यादें ।
तू ही बता इस कशमकश का मर्ज क्या है।।
फिक्र ए जिस्म का नूर हुड़ सा गया है ।
तेरी बाहों में छुपे पल याद है मुझे ।।
जब आंखों के पर्दे उठाए थे पहली बार ।
उस वक्त की जंजीरों में कसे हैं मेरे पल ।।
अब घड़ियां नहीं सदियां गुजरती हैं उन यादों में ।
और अकेले हम ही मरीज ए इश्क बैठे हैं ।।
यूं ही रास्तों पर परेशान करती हैं तेरी यादें।
तू ही बता इस कशमकश का मर्ज क्या है।।