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4 Jul 2017 · 1 min read

यूं ही तैरते रहो मेरे मन आंगन में

तुम मेरे अरमानों जैसे हो,
तुम मेरी जिंदगी के तरानों जैसे हो,
तुम मन जैसी मुस्कानों जैसे हो,
तुम तपिश में बदली वाले आसमान जैसे हो,
तुम उन्मुक्त हो, स्वच्छंद हो, अविरल हो, श्वेत हो,
तुम मेरे मन में शब्दों के खूबसूरत अवशेष हो,
तुम यूं ही तैरते रहो मेरे मन आंगन में,
मैं यूं ही सहेजते रहूंगा सपनों के मासूम बुलबुलों को।

संदीप कुमार शर्मा

Language: Hindi
285 Views
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