यूं मेरी वफ़ाओं का इन’आम दिया तूने
ग़ज़ल – (बह्-हज़ज मुसम्मन अख़रब सालिम)
यूं मेरी वफ़ाओं का इन’आम दिया तूने।
मैं छोड़ू शहर तेरा पैग़ाम दिया तूने।।
क्या इसमें मिलाया है तूने ये मेरे साक़ी।
जो नाम ए मुहब्बत से इक जाम दिया तूने।।
ये लोग मुझे कैसे नामो से बुलाते है।
कहते है ये दीवाना जो नाम दिया तूने।।
इक आग़ मेरे तन में महसूस हुई शब़ भर।
बोसा जो मेरे लब पर इक शाम दिया तूने।।
हर रस्म ए मुहब्बत को ये अनीश निभाता है।
तो बेवफ़ा का फिर क्यों इल्जाम दिया तूने।।
@nish shah