यूं ना तुम
यूं ना तुम, रूठ कर बैठ जाया करो ।
जो भी मन की व्यथा हो बतलाया करो ।।
ख़ामोश बैठ तुम खुद को इतना क्यों कोसती हो ।
जो भी हो शर्म तोड़ कर बोल दिया करो ।।
माना नादान हूँ मैं, नहीं समझ आता मुझे ।
तुम तो समझदार हो , इतना मत उलझाया करो ।।
यूं ना तुम, रूठ कर बैठ जाया करो ।
जो भी मन की व्यथा हो बतलाया करो ।।
ख़ामोश बैठ तुम खुद को इतना क्यों कोसती हो ।
जो भी हो शर्म तोड़ कर बोल दिया करो ।।
माना नादान हूँ मैं, नहीं समझ आता मुझे ।
तुम तो समझदार हो , इतना मत उलझाया करो ।।