यूं घुट जाना ठीक नहीं है
जीवनोत्सव की सुखद घड़ी में,
मन तन व हर पल रोमांचित होता है..
यादों की लडियों स्मृतियों में,
स्वप्निल सा सबकुछ संचित रहता है..
भीड़भाड़ से दूर अकेले यूं बैठे हो,
जैसे मन में उथल पुथल रहता है..
चिंतन क्लेश सही लोगों के आभूषण है,
मन का साफ सदा सुख से वंचित रहता है..
इतनी सुंदर सहज सरल व शांत प्रतिकृति,
पत्थर की मूरत बन जाए ठीक नहीं है,
इससे सृजनकर्ता भी चिंतित रहता है…
नहीं बोलना नहीं बताना रहना सब से दूर अकेले,
यूं चुप रहना ठीक नहीं है…
दुनियां के झंझावातों से घबराकर, घोर तिमिर में,
यूं घुट जाना ठीक नहीं है….
भारतेन्द्र शर्मा