यूँ ही न हुए हम-तुम बदनाम जमाने मे
यूँ ही न हुए हम-तुम बदनाम जमाने मे
कुदरत ने ही लिक्खा है सब कुछ अफ़साने में
बेमतलब हँसते हैं, बेमतलब रोते हैं
है कौन नहीं पागल इस पागलखाने में
जाने कितने रूठे कितने टूटे फिर भी
आँखों को मजा आए ख़्वाबों को सजाने में
कितने खुशियों के पल छूकर गुजरे लेकिन
इंसान रहा गाफिल दौलत ही कमाने में
जीवन के सुनहरे पल बस यूँ ही बीते हैं
कुछ कर्ज चुकाने में कुछ फर्ज निभाने में