*”यूँ ही जीवन बीते “*
सुबह हुई सूरज निकला नित भोर हो जाती।
ढलता सूरज की लालिमा सांझ हो जाती।
बचपन के वो सुहाने दिन मीठे सपने दे जाते ।
युवा पीढ़ी जवानी दहलीज जब पार कर जाते।
सपनों को साकार कर हमसफ़र साथी तलाशते।
रिश्ते नातों में उलझकर जीवन भर साथ निभाते।
जीवन लक्ष्य बना मंजिल तय कर खुशियाँ मनाते।
समय के कालचक्र की धुरी पर जीवन बिताते।
मौसम बदलता रहता यूँ ही हम भी बदलते जाते ।
जय श्री कृष्णा राधेय राधेय ???