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19 Mar 2020 · 1 min read

यूँ ही आ चाहे जरूरत में आ

कहीं किसी भी मुहूरत में आ
मेरे ख्यालों से हकीकत में आ

तिरा दीदार सुकूँ देता है
युँ ही आ चाहे जरूरत में आ

खुशी के वक्त़ न आने वाले
निकल के आँख से मैय्यत में आ

हटा ये नाज अमीरों वाला
उठा के रोटियाँ गुरबत में आ

सही गलत का फैसला होगा
खिलाफ बोल बगावत में आ

शरीफ हूँ मै मुझसे मिलने को
मुखौटा डाल शराफत में आ

खुला दरवाजा हैं बिछी पलकें
मिरे महबूब नजाक़त में आ

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