यूँ मुझसे दामन छुडा रहा है
यूँ मुझसे दामन छुडा रहा है
वो मुझपे तोहमत लगा रहा है
वो ख़ाक मेरी उडा उडा कर
हवाओं का रुख दिखा रहा है
सजा के होठों पे मुस्कुराहट
वो ग़म को अपने छुपा रहा है
में फिर भी पोछूंगा उसके आंसू
जो झूठे आंसू बहा रहा है
है कोई पागल चराग़ अपना
जो आंधियों में जला रहा है
इरशाद आतिफ़ अहमदाबाद