यूँ तो हज़ारों ख़याल थे
यूँ तो हज़ारों ख़याल थे तुमको लेकर
ग़म तो बस ये रह गया कि
ख़याल ही बनकर दफ़्न रहे वो दिल में कहीं।
हज़ारों सवाल थे पूछने तुमसे
बस हिम्मत ही नहीं जुट पाई हमसे।
ये पूछना था कि
क्या तुम मेरा हर वो चुटकुला समझती थी?
जिसे सुनके तुम मुस्कुरा देती थी
मेरी ग़ज़लों के हर शेर पे वाह-वाह जो करती थी?
क्या सचमें उनके मतलब समझ पाती थी?
और जो बालों को चेहरे पे बिखेड़े रखती थी
मैं उँगलियों से उन्हें कानों के पीछे कर दूँ
क्या ऐसा तुम चाहती थी?
और जब कभी दुपट्टा भिगो के आती थी आँसुओं से
क्या तुम चाहती थी कि
मैं तुम्हें अपना कंधा रोने के लिए दूँ
प्यार से तुम्हारें माथे को सहला दूँ?
काश मैं ये सारे सवाल वक़्त रहते पूछ पाता कभी,
दिल के ख़याल वक़्त रहते बता पाता कभी।
वैसे हाँ, तुम लाल रँग के बारे में बिल्कुल सही थी,
दुल्हन के जोड़े में तुम सचमें परी लग रही थी
दुल्हन के जोड़े में तुम सचमें परी लग रही थी।।
जॉनी अहमद ‘क़ैस’