युवा सपूतों
किधर जा रहे हो युवा सपूतो
मॉक सिगार, ई सिगरेट न फूंको||
आओ देवालय तुमको बुलाते
देव हिमांचल के गा गा सुनाते ||
देख कर पश्चिम को भटकते क्यों हो
अपने ही सत्य से मुकरते क्यों हो ||
शस्य श्यामला भारत की धरती
भ्रमण तो करो ये गर्वित है करती ||
संभल जाओ तुमको हम ये बताते
पछताओगे तुम जग से जाते जाते||
यूं जिम में जाकर न बॉडी दिखाओ
श्रेष्ठ हो स्वास्थ्य, सौष्ठव बनाओ||
ये माल्ट झूठे हैं झूठा दिखावा
ब्रह्मचर्य सच्चा है ये सब छलावा||
विज्ञापन के मारे जो फंसते बेचारे
सप्लीमेंट खाकर गए बे मौत मारे||
ज्ञान विज्ञान अध्यात्म सिखाए
मल्ल पहलवान दंगल लड़ाए ||
अर्जुन धनुर्धर भीम और बलराम
शुद्ध अन्न और मन से हो खाद्यान्न ||
करके समर्पित ग्रहण जब हैं करते
वही भोज वास्तव मुक्त रोग करते||
तिल के लड्डू गजक गुण मखाने
चना, मूंगफली, घी, बाजरा के हों दाने||
गाजर का हलवा, रसगुल्ला बंगाली
क्यों मीठा है चॉकलेट भरी जब है थाली||
पंजीरी अगहन, माघ खिचड़ी उड़द की
मुंगी का हलवा मोतीचूर और बर्फी||
सो कहना हमारा यही आप सबसे
कवित्त छंद हमारा हुआ रेप कब से||
चुरा ज्ञान वेदों से हमको सिखाते
कभी नीम का झूठा पेटेंट कराते||
शिव के पुजारी हम शक्ति के साधक
पीते हलाहल हम खेले सिंह शावक||
भूले खुद को क्यों तुम भरत वंश प्यारे
चाणक्य चन्द्रगुप्त अशोक सुत न्यारे ||
खलनायक भी जहां महापंडित हुआ है
अहम ज्ञान रावण भी खंडित हुआ है||
जागो स्वयं से स्वयं को मिलाओ
अंतस में अपने लौ अब जगाओ||
राणा शिवाजी के भाला संभालो
नवीन सभ्यता को अब सवारों||
हम भक्ति का प्याला इकतारा में गाते
प्रणय गीत मधुवन के ईश्वर मिलाते ||
भरत वंश जग में कहलाते
सिंह शावक के दंत गिनाते ||
वेदों का ज्ञान प्रकाश फैलाते
अध्यात्म की लौ हम , हृदय जगाते ||
हम शून्य -अंक खोजने वाले
विश्व गुरु कहलाने वाले ||
हमारी तुलना क्या किससे होगी
ऋषि संत योगी हैं, नहीं हम भोगी ||
नग्न ही कन्दराओं में रह जाते
मानव को मानवता सिखलाते ||
हम हैं सनातन शिव आराधक
शक्ति रूप के हम ही साधक ||
जहां वात्सायन ऋषि कहलाते
बसंतसेना को सम्मान दिलाते ||
गीता-पुराण, रामायण संग गाते
जहां कामसूत्र भी, ग्रंथों में आते ||
जहां नगर वधू, विदुषी बन जाती
महाभारत में बृहनाला की झांकी ||
जहां शिव स्वयं गरल पी लेते
कष्ट क्लेश सबका हर लेते ||
जहां गौरी संग गणेश हैं आते
गण और प्रेत नंदी संग गाते ||
जहां पंचतत्व की पूजा होती
कहों प्रकृति की कहाँ ये झांकी ||
करके भ्रमित इस, हिन्द समाज को
वर्चस्व बनाया, लोलूप के राज को ||
लूटा भारत और सम्पदा भी लूटी
नीची ये राजनीति, कब इनसे छूटी||
पुनः जागरण अवसर आया है
संस्कृति जागृति का समय लाया है ||
मंगल मिशन ने इतिहास रचा था
चंद्रयान ने रच दी अब गाथा ||
खेलों में परचम लहराया
म्हारी छोरियां ने ध्वज फहराया ||
क्रिकेट कबड्डी या हो हॉकी
दिखने लगी अध्यात्म की झांकी ||
काशी अवध को मुक्त कराया
संसद में शंखनाद करवाया ||
मात- पिता और स्त्री सम्मान हो
संस्कारों में नैतिकता पहचान हो ||
फिर से गुरकुल वैद्यशाला बनबाएं
अनिवार्य प्राकृतिक हों पाठशालाएं ||
कन्या अब देवी लक्ष्मी कहलाये
नहीं निर्भया अब जानी कहीं जाए ||
मेरा देश विश्व गुरु फिर से होगा
जय जय भारत की ये नभ करेगा ||