जीवनदाता किसान
किसानों के वसन भी फट जाते हैं ,
तब जाकर एक फसल लहराती है ,
पर मनुज धिक्कारते किसानों को ,
जिस्म से स्वेद की दुर्गंध आती है।
फसल चाहे सोना ही क्यों ना हो?
पर किसानों के माथे रोना ही है ,
देश की अर्थव्यवस्था सुधारनी होगी ,
अपने जीवनदाता किसान भाईयों को ,
स्वजन प्रभुत्व हमें दिलाना होगा।
किसान ही हमारे जीवन दाता ,
जिनको चपाती नसीब नहीं होतीं ,
हम अपनी इस जिंदगानी की ,
इतनी अल्प कीमत क्यों लगाते?
अपनी जिंदगी की अहमियत पहचानो ,
किसानों को उचित परिव्यय देना सीखों ,
देश को उन्नति की ओर संवर्धना है तो ,
किसानों को उचित परिव्यय देना होगा।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या