युद्ध
जीत पर बजतीं हैं तालियां,
हार पर पीठ पीछे न जाने कितनी गलियां।
मेहनत पर प्रश्न चिन्ह उठेगा
तानों की माला का हार चढ़ेगा।
जो खुश होंगे अंदर से
झूठी तसल्ली दिखाएंगे।
और पीठ पीछे,
सिंह साहब अपने बच्चे पर
फालतू पैसा उड़ा रहें हैं
ऐसा कह कर जायेंगे।
इनसे तुम भयभीत न होना,
ये सब तो बस तानें हैं।
अपनों को उम्मीद है तुमसे
उनके सपने सच कर दिखानें हैं।
पापा अब भी कहतेंं हैं
बेटे मुझको तुझ पर पूरा यकीं
माॅं कहती है,
मेरा बेटा तो बनकर आएगा अफसर एक दिन।
सुनों चुनौती अब भारी है
तुम पर उम्मीदों की जिम्मेदारी है।
याद रखो पापा का सर फक्र से उठना है
और अपनी अम्मा के लिए अफसर बनकर जाना है।
अब फिर संग्राम छिड़ेगा
जो लड़का कल तानों से टूटा था
अपनों की उम्मीदों की एवज में लड़ेगा।
फिर संग्राम होगा,बनेगा वो अर्जुन
और बिना सारथी के वो पूरा युद्ध लड़ेगा।