युद्ध सिर्फ प्रश्न खड़ा करता है [भाग ५]
इस युद्ध ने न जाने कितने ही
माँ-बाप से ओलाद को छिन लिया है!
जिस ओलाद के लिए माँ ने
न जाने कितनी मिन्नत मांगी थी!
कहाँ- कहाँ वह बेचारी ,
इसके लिए न भागी थी!
आज अपने बच्चे की लाश,
अपने हाथों में लिए पड़ी है!
बार-बार वह अपने आँचल से,
उसके मुख को पोछ रही है!
उठ जाओ मेरे लाल ,
ऐसा बार बार वह बोल रही है!
उसकी आँखों से आँसु की
अब नदियाँ बह रही है!
बार- बार अपने बच्चे की
बेजान शरीर को कलेजे से लगा रही है!
न जाने उस बच्चे के लिए
वह कितनी रातें जागी थी!
बच्चे के एक खुशी के लिए उसने ,
अपनी सारी खुशियाँ त्यागी थी!
कहाँ कभी अपने लिए उसे
होश हुआ करता था!
बच्चे के आगे पीछे ही
उसका जीवन चलता था!
संसार की सारी खुशियाँ उसे,
उस बच्चे के माँ कहने पर ही
मिल जाती थी!
कहाँ वह बेचारी इससे ,
ज्यादा कुछ सोच पाती थी!
अब बेचारी क्या करेगी,
किसके लिए अब जियेंगी,
यह प्रश्न उसके मन में
बार-बार आ रहा था।
वही पर बैठा पिता अपने,
बच्चे को निहार रहा था ।
न जाने कब से सुध-बुध
खोकर ,
एक टक से बार-बार
देखे जा रहा था।
किसको अपने कंधो पर
बैठाकर अब मैं घुमाऊँगा!
अब किसको घोड़ा बनकर
मै अपने पीठ पर बेठाऊगाँ!
किसको हाथ पकड़कर
अब मै शहर दिखाऊंगा!
किसके किलकारी पर अब
मै ताली बजाऊँगा!
जब वह यहाँ- वहाँ छुप जाता था,
हम सबका प्राण निकल जाते थे!
अब जब वह मेरे पास नही है,
हम सब कैसे जी पाएँगे!
यह सब अपने बच्चे के
बेजान शरीर को देखकर
वह सोच रहा था ।
कब कैसे दिन गुजरेगा !
यह प्रश्न उसके सामने खड़ा था ?
~अनामिका