युद्ध सिर्फ प्रश्न खड़ा करता है [भाग३]
युद्ध में मरा हुआ परिवार,
जिसके घर में कोई न बचा था!
बेज़ान पड़ी दीवारें आज,
अपने मालिक के लिए रो रहा था!
कल तक इस घर में
कितनी खुशियाँ हुआ करती थी !
मेरी हर दीवारें ठहाकों से
गुंजा करती थी!
मेरे इस घर में चारों तरफ
रोनक ही रोनक हुआ करता था!
घर के चारो तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ ,
बिखरा रहता था!
आज यहाँ केवल सन्नाटा
बिखरा पड़ा हुआ है,
इन सब को कैसे गति दिलाऊँ
कोई तो नही आ रहा है!
इस युद्ध ने तो पूरा परिवार
ही छिन लिया है!
अब इन चीज़ो को भोगने के लिए
कहा कोई रह गया है!
कल तक जो घर हुआ
करता था!
अब खण्डहर में बदल गया है!
क्योंकि इस घर को घर बनाने वाला ,
कोई जो न रह गया है!
इससे अच्छा हम पत्थर के सही है
कम से कम अपने स्वार्थ के लिए
किसी को मारा नहीं करते है ,
जहाँ रख दिया जाता अपने हिस्से मे रहते हैं!
अब इन बेचारो को मुक्ति
कैसे मिले,
इन प्रश्नो का उत्तर तलाश रहा
आज भी वह घर खड़े -खड़े
यही सोच रहा है!
~अनामिका