युद्ध के बाद
मंजर बिलकुल ही अलग दिखे युद्ध के बाद।
बस्ती है उजड़ी हुई,टूटा घर बर्बाद।।
कैसी लपटें उठ रहीं,विभीषिका की आग।
मिटे कभी मिटता नहीं,ऐसा गहरा दाग।।
जर्रा-जर्रा कांपता,बहुत भयावह हाल।
बारूदों के ढेर पर, बिखरे नर-कंकाल।।
धरती पर लाशें बिछी,चहुँ दिश चीख-पुकार।
कटे सरों का हर तरफ,दिखता है अंबार।।
दवाइयाँ आहार जल ,सबका पड़ा अकाल।
जख्मों से तड़पे मनुज,दर्दों से बेहाल।।
देखो कैसे युद्ध ने ,सब कुछ किया तबाह।
दसों-दिशा में गूँजता,कितना करुण कराह।।
माँ की सूनी कोख है,बच्चे हुए अनाथ।
पत्नी विधवा हो गई,छूटा पति का साथ।।
युद्ध हमेशा से किया,केवल नरसंहार।
जाते-जाते दे गया,मन पर जख्म हजार।।
नहीं मौत की हो फसल,खिले खेत-खलिहान।
भाई-भाई-सा रहें,भारत पाकिस्तान।।
-लक्ष्मी सिंह