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28 Oct 2024 · 2 min read

युद्ध का परिणाम

युद्ध का परिणाम
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युद्ध का परिणाम विजय नहीं है।
सिर्फ एक गौरव का दलन है।
एक अहंकार का प्रदर्शन है।
व्यक्तित्व में समाहित अमानुषिक प्रवृति का
उद्भ्रांत उद्बोधन है।

सरल शब्दों में सत् चरित्र को
उँड़ेला गया गरल है।
अपयश,अपकीर्ति को महिमा मंडित करने का
कुत्सित शगल है।

अगर ईश्वर है तो युदध का विजय
उसकी हत्या करना है।
और यदि ईश्वर नहीं है तो
ईश्वर-रूप स्वयं की हत्या करना है।

युद्ध व विजय की आकांक्षा का जन्म
माँ के कोख से नहीं होता।
यह सर्वदा पिता/पितर के
दूषित महत्वाकांक्षा से आया है होता।

य़ुद्ध का मन अव्यवस्थित होता है
योद्धा का तन असंस्कारित।
योद्धा संहार और विनाश से
होता आया है सम्मोहित।

विजय का उत्सव मनाने के लिए
विजेता पराजित समूह के स्त्रियों को,
उसके कण-कण अस्तित्व को
करता है अमानुषिकता के हद तक
अपमानित।

वीभत्सता के सीमा के पार तक दलित।

पराजित समूह को निम्नतम स्तर तक
ढ़केल देने के लिए मनु-स्मृति सरीखे
कल्पित पुस्तक को वैधानिक वैधता
करने प्रदान
सारी राष्ट्रीय परम्परा को
करता है ध्वस्त।
यह अकर्म विजेता का तिरस्कृत पराजय है।

हिंसा,लूट,बलात्कार समझता है अपना अधिकार।
असहमति को पराजितों का दुर्व्यवहार।
उनको उनकी मातृभूमि से निष्कासित।
विजेता के घृणा की पराकाष्ठा
कि उन्हें बना दे शोषित और शासित।

संस्कृति को छिन्न-भिन्न करने का संकल्प
पराजित सभ्यता है।
सभ्यता को असभ्य बनाने का निश्चय
पराजित संस्कृति है।
किन्तु, यही विजय का चरित्र है।
और श्मशान में भूतों का सा नृत्य है।

विजय की परिभाषा का इतना निर्मम,निष्ठुर होना
मानवीय धर्म के कर्म का स्खलन है।
आदमी का निकृष्ट पतन है।
प्रबुद्ध का विनय ये हो कि
विजय सर्वदा और सर्वथा पराजित हो।
युध्द अपने लिए न जीये
उसका जीना
दूसरों के जीवन हेतु उद्भासित हो।
—————————————–11-9-24

Language: Hindi
26 Views

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