चूड़ी
युग बदला लेकिन ना बदला,
चूड़ी का श्रृंगार।
आधुनिक युग में भी रहा है
श्रेष्ठता बरकरार।
फैशन के युग में रोज़ाना,
नव आकार-प्रकार।
हर युग में हरदम बना रहा,
चूड़ी का व्यापार।
मांगलिक कार्य हो या कोई,
व्याह,तीज-त्योहार।
सज जाती है रंग-बिरंगी,
चूड़ी से बाज़ार।
युग बदला…….
रंग-बिरंगी लाख-काँच की,
अति डिज़ाईनदार।
मीना, मोती,हीरा, कुन्दन,
जड़ाऊँ शानदार।
धर्म-रीति-रिवाज़ों से जुड़े,
संस्कृति का आधार।
सुहागन की सुहाग निशानी,
इक प्रमुखअलंकार।
युग बदला…….
सजाकर चूड़ियों की दुकान,
जब बैठे मनिहार।
आकर्षित होकर के खिचती,
चल आती हर नार।
अति पसंद होता नारी को,
चूड़ी का उपहार।
हाथों में खनके मनमोहक,
चूड़ी गोलाकार।
युग बदला…..
है चिर प्रार्थना यही प्रभु से,
हो सोलह श्रृंगार।
जीवन भर ऐसे ही देना,
मुझे पिया का प्यार।
कलाइयों में हो सदा सजी,
चूड़ी की झंकार।
रिक्त नहीं हो कभी कलाई,
हरपल हो दो-चार।
युग बदला………….
-लक्ष्मी सिंह