युग निर्माण(कविता)
युग निर्माण का वक्त आ गया, सब मिलकर कदम बढाओ।
छाई जग में असत्य की रात, सब मिल सत्यदीप जलाओ।।
सुख-दुख, धन और दौलत, ये तो सदा आते-जाते रहते,
मोह-माया में रखकर भी, खुद को मोक्ष को द्वार दिखाओं।।
युग निर्माण का………………………………………………..।
कलियुग तो आया कभी नही, आई बस व्यवहारों में बुराई
सत्यदीप खुद में प्रज्जुलित कर, आत्मस्वभाव मधुर बनाओं।।
युग निर्माण का………………………………………………..।
आये क्यों इस जग में तुम, उद्देश्य अपना यह पहचानों
अपने लक्ष्यों को निर्धारित कर, सत्मार्ग पर कदम बढाओ।।
युग निर्माण का………………………………………………..।
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई, विभाजन के सब हैं ये फन्दे
मानव धर्म को अपनाकर तुम, मानवता की अलख जगाओ।।
युग निर्माण का………………………………………………..।
द्वेष, जलन, ऊँच-नीच भावना, अन्धकार में हमको धकेले
प्रेम-प्रीत-नम्रता से रहकर, जग में जन प्रेम को बढाओं।।
युग निर्माण का………………………………………………..।
जीवन है सबका दो दिन का मेला, ये चिड़िया रैन बसेरा
करके परमार्थ कमाई जग में, जीवन अपना सफल बनाओं।।
युग निर्माण का………………………………………………..।
सांस-सांस, हर सांस है आपकी, ईश्वर की आज कर्जदार
आत्मचिंतन का करके मंथन तुम, हर सांस में हरि बसाओं।।
युग निर्माण का………………………………………………..।
कलियुग के इस भ्रष्ट जग में, बन बैठा मानव एक दानव
सत्य प्रकाश करके प्रकाशित, खुद को देवस्वरूप बनाओ।।
युग निर्माण का………………………………………………..।
मोहित शर्मा ‘‘स्वतन्त्र गंगाधर’’