युग का अंतर
कृष्ण अगर कलियुग के मित्र होते
तो कमी सुदामा में भी निकालते ,
कहते सुदामा का पुत्र उससे बेहतर है
सुदामा उससे कमतर है ,
पुत्र तो जो है सब दिखा देता है
पर सुदामा तो चावल भी छुपा लेता है ,
पुत्र की स्थिति और सुदामा की परिस्थिति
वो कभी ना समझते
ना ही नंगे पैर दौड़ कर सुदामा को
पकड़ हृदय से भीचते ,
सोचते …
चावल छुपाने में भी
सुदामा की ज़रूर कोई मंशा है
इसकी दरिद्रता में भी
पक्की कोई शंका है ,
शुक्र है वो कलियुग न था
बस दोस्तों के मिलन का युग था ,
आज तो कोई रिश्ता बिना शक़ के
पनप ही नही सकता
कोई सुदामा अपने सखा से सपने में भी
मिलने की सोच ही नही सकता ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 15 – 12 – 2018 )