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8 Jul 2024 · 1 min read

युग अन्त

सुना है मैने वो गाथा
घटित हो , जब युग अन्त हो
काम,क्रोध,लोभ,छल
अवगुण से धरा विभोर हो।

ग्रहों नक्षत्रों की अनंत गंगा में
जब युगों से युग का योग हो
गंगा जब सुख के हो कंटक
धरा में जब ओज न हो।

मानव में मानवता
और सूरज में जब तेज न हो
चारो तरफ रक्तक्षेत्र
हिंसा और विध्वंश हो ।

स्त्री जब निरादर
अपमानों की वस्तु हो
जब घर घर में दुश्शासन
शक्तिहीन पुरुषत्व हो।

जब दसोदिशाओं में दुख के
क्षीण होने का संयोग हो
तब चक्रसुदर्शन ,चतुर्भुजधारी
का अवतार कल्कि रूप हो ।

पुनः प्रारंभ युग अन्त का
रुद्र रूप से दमन हो
चरा-चर में उदित
सुंदर सृष्टि का आगमन हो।

सर्वत्र सिंचित धरा
नर-नारी प्रणय प्रसंग हो
नव युग के अभिनंदन में
नव्य सिंध ,सागर,पतंग हो।

Language: Hindi
2 Likes · 79 Views
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