युगप्रवर्तक_आइंस्टीन
अल्बर्ट आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत ने एक नई संकल्पना को जन्म दिया, जिसके अनुसार: ‘यदि प्रकाश की एक किरण अत्यंत प्रबल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से गुज़रेगी, तो वह मुड़ जाएगी.’ 29 मई, 1919 को ब्रिटेन के खगोलशास्त्रियों ने पूर्ण सूर्यग्रहण के अवसर पर किए गए अवलोकनों से आइंस्टाइन के इस पूर्वानुमान की पुष्टि की. अगले दिन आइंस्टीन जब सोकर उठे तो उनकी दुनिया ही बदल चुकी थी. उनके इस सिद्धांत को न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के बाद दुनिया का सबसे बड़ा आविष्कार माना गया.
उन्नीसवीं सदी के अंत में सैद्धांतिक भौतिकी (थ्योरिटिकल फिजिक्स) के वैज्ञानिकों ने यह दावा कर दिया था कि भौतिकी में जो भी नई खोजें हो सकती थीं, वे हो चुकी हैं और इससे आगे भौतिकी ज्यादा से ज्यादा सही नाप-जोख तक सीमित रह जाएगी. उनके दावे का आधार गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत, विद्युत चुंबकीय सिद्धांत, ऊष्मागतिकी (थर्मोडायनामिक्स) वगैरह क्षेत्रों में हो चुकी खोजें थीं. उस समय भौतिकी के पंडितों की यह आम राय थी कि भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अब नया खोजने के लिए कुछ भी शेष नहीं रह गया है.
जिस तरह से सिकंदर ने बचपन में अपने पिता से इस बात की शिकायत की थी कि जिस प्रकार से वे दुनिया को फतह कर रहे हैं उसके चलते उसके पास जीतने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा, ठीक उसी तरह से उस दौर के वैज्ञानिकों को भी विज्ञान (विशेषकर भौतिकी) से शिकायत थी! यह एक ऐसा दौर था जब भौतिकी के क्षेत्र में शोधकार्य करने को इच्छुक छात्रों को शिक्षक समझाते थे कि भौतिकी में सबकुछ खोजा जा चुका है, बेहतर होगा कि कोई दूसरा विषय ले लो. ऐसा प्रतीत होने लगा था मानो वैज्ञानिकों ने प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली हो.
मगर असलियत में में ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत सिद्धांतों पर नए प्रयोगों ने प्रश्न चिन्ह लगा दिए और धीरे-धीरे इन पुराने सिद्धांतों की उपयोगिता कम होने लगी तथा ब्रह्मांड की व्याख्या के लिए नए सिद्धांतों की जरूरत महसूस की जाने लगी. और इसके बाद तो भौतिकी में महान खोजों की झड़ी-सी लग गई और एक्स-रे, रेडियोएक्टिविटी, इलेक्ट्रॉन, रेडियम, फोटो-इलैक्ट्रिक इफैक्ट, क्वांटम थ्योरी आदि खोजें भौतिकी के क्षितिज पर प्रकट हुर्इं. और, 1905 में तो मानो चमत्कार ही हो गया. इस साल स्विस पेटेंट ऑफिस में एक क्लर्क की हैसियत से काम कर रहे 26 वर्षीय अल्बर्ट आइंस्टीन ने भौतिकी की स्थापित मान्यताओं को चुनौती देते हुए स्पेस-टाइम और पदार्थ की नई धारणाओं के साथ चार शोधपत्र प्रकाशित किए जिन्होंने सैद्धांतिक भौतिकी को झकझोरकर उसका कायाकल्प ही कर दिया.
साल 1905 में छह महीनों के भीतर आइंस्टीन ने चार क्रांतिकारी शोधपत्र प्रकाशित करके अंतरिक्ष, समय, द्रव्यमान और गति से संबन्धित पुरानी मान्यताओं को एकदम बदल डाला. आइंस्टीन का पहला शोधपत्र प्रकाश-क्वांटम (जिसे बाद में फोटोन नाम दिया गया) से संबंधित था और जो फोटो-इलैक्ट्रिक इफैक्ट की व्याख्या करता था. इसी शोधपत्र ने क्वान्टम सिद्धांत को आधार प्रदान किया. आइंस्टीन ने अपने दूसरे शोधपत्र में ब्राउनियन मोशन की व्याख्या की तथा परमाणु और अणु की वास्तविकता को सुनिश्चित किया. आइंस्टीन का तीसरा शोधपत्र विशेष सापेक्षता सिद्धांत (थ्योरी ऑफ स्पेशल रिलेटिविटी) से संबंधित था. इसमें उन्होने बताया कि समय, स्थान और द्रव्यमान तीनों ही गति के अनुसार निर्धारित होते हैं.
विशेष सापेक्षता के निष्कर्ष सामान्य बुद्धि (कॉमन-सेंस) से परे के हैं, जैसे कि दूसरों के सापेक्ष आप जितनी तेज रफ्तार से गतिशील होंगे, उतना ही आपका द्रव्यमान ज्यादा होगा, उतना ही आप कम स्थान घेरेंगे और आपकी घड़ी उतनी ही कम रफ्तार से चलेगी. आइंस्टीन का चौथा छोटा शोधपत्र तीसरे शोधपत्र का ही एक हिस्सा था. चौथे शोध पत्र में उन्होंने द्रव्यमान और ऊर्जा के बीच के संबंध को स्थापित करते हुए मशहूर E=mc² सूत्र प्रतिपादित किया था. जहां E ऊर्जा, m द्रव्यमान है और c² प्रकाश की रफ्तार का वर्ग है.
पहली बार इसी समीकरण से यह स्पष्ट हुआ कि द्रव्यमान और ऊर्जा एक ही भौतिक सत्ता के दो पहलू हैं, वस्तुत: एक ही हैं.
आइंस्टीन तत्कालीन भौतिकी में शैतानरूपी विपदा के समान आए और तब न्यूटन पर एल्कजेंडर पोप के शोक संदेश (‘प्रकृति और प्रकृति के नियम रात के अंधकार में ओझल थे; ईश्वर ने कहा, “न्यूटन को आने दो” और रोशनी फैल गई’) की नकल करते हुए सर कोलिंग्स स्क्वायर को कहना पड़ा: ‘यह अंतिम नहीं था और शैतानी हुंकार भरी, छी; यथास्थिति बहाल करने के लिए आइंस्टीन को आने दो.’
यह सब जर्मनी के उल्म शहर के एक ऐसे लड़के ने किया था, जिसको परिवार और विद्यालय ने मंदबुद्धि घोषित कर दिया था; जिसने पढ़ाई पूरी होने से पहले ही विद्यालय छोड़ दिया था; पॉलिटेक्निक प्रवेश परीक्षा में असफल हो चुका था; जिसे पढ़ाई पूरी करने के बाद विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य प्राप्त करने में भी असफल होने के बाद स्विस पेटेंट ऑफिस में एक क्लर्क की नौकरी से ही संतोष करना पड़ा था.
आइंस्टीन के सिद्धांतों में ऐसा क्रांतिकारी क्या है? दरअसल, आइंस्टीन के समय तक अंतरिक्ष, समय, द्रव्यमान और ऊर्जा सभी को निरपेक्ष और स्वतंत्र समझे जाते थे. आइंस्टीन ने महज एक साल में, वस्तुत: छह महीनों में स्पेस, टाइम, द्रव्यमान और गति से संबन्धित पुरानी मान्यताओं को एकदम से बदल डाला. तब से स्पेस और टाइम का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रह गया; दोनों जुड़कर ‘स्पेस-टाइम’ बन गए. और आइंस्टीन से पहले ऊर्जा और द्रव्यमान एक दूसरे को प्रभावित न करने वाले माने जाते थे और अलग-अलग रखे जाते थे, इस धारणा को भी बदलकर आइंस्टीन ने भौतिकी के क्षितिज को विस्तृत किया.
आइंस्टीन का जीवन इस बात का प्रमाण है कि साधारण से साधारण व्यक्ति भी परिश्रम, साहस और लगन से सफलता प्राप्त कर सकता है. वैसे 1905 में प्रकाशित आइंस्टीन के शोधपत्रों से भौतिकी में तत्काल कोई परिवर्तन नहीं हुए. मगर जैसे ही आइंस्टीन के कार्यों को सही मान्यता मिली, उनके सामने पदों को स्वीकार करने के लिए विश्वविद्यालयों और अकादमियों की भीड़ लग गई. इसी बीच आइंस्टीन ने अपने विशेष सापेक्षता सिद्धांत को आगे विकसित करते हुए सामान्य सापेक्षता सिद्धांत प्रतिपादित किया.
आइंस्टीन ने विशेष सापेक्षता सिद्धांत के पूर्व मान्यताओं को कायम रखते हुए ‘सामान्य सापेक्षता सिद्धांत’ (थ्योरी ऑफ जनरल रिलेटिविटी) 25 नवंबर, 1915 को ‘जर्मन ईयर बुक ऑफ़ फ़िजिक्स’ में प्रकाशित करवाया. सामान्य सापेक्षता सिद्धांत को ‘व्यापक सापेक्षता सिद्धांत’ भी कहतें हैं. इस सिद्धांत में आइंस्टीन ने गुरुत्वाकर्षण के नए सिद्धांत को समाहित किया था. इस सिद्धांत ने न्यूटन के अचर समय तथा अचर ब्रह्माण्ड की संकल्पनाओं को ध्वस्त कर दिया. कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार यह सिद्धांत ‘सर्वोत्कृष्ट सर्वकालिक महानतम बौद्धिक उपलब्धि’ है. दरअसल बात यह है कि इस सिद्धांत का प्रभाव, ब्रह्माण्डीय स्तर पर बहुत व्यापक है.
वस्तुतः हम पृथ्वी पर रहते हैं, जिसके कारण हम ‘यूक्लिड की ज्योमेट्री’ को सही मानतें हैं, परन्तु स्पेस-टाइम में यह सर्वथा असत्य है. और हम पृथ्वी पर अपनें अनुभवों के कारण ही यूक्लिड की ज्योमेट्री को सत्य मानतें हैं, और सामान्य सापेक्षता सिद्धांत यूक्लिड के ज्योमेट्री से अलग ज्योमेट्री को अपनाती है. इसलिए सामान्य सापेक्षता सिद्धांत को समझना आशा से अधिक चुनौतीपूर्ण माना जाता रहा है.
इस सिद्धांत की गूढ़ता के बारे में एक घटना विख्यात है जोकि स्मिथ नामक एक प्रोफेसर के बारे में था.
“प्रोफेसर स्मिथ ने लोगों को सामान्य सापेक्षता सिद्धांत को सरल भाषा में समझाने के लिए एक किताब लिखी” किसी ने उस किताब के बारे में लिखा था: ‘‘प्रोफेसर स्मिथ आइन्स्टाइन से भी अधिक प्रतिभाशाली हैं. जब आइंस्टीन ने सर्वप्रथम सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की व्याख्या की थी तब सम्पूर्ण विश्व में मात्र बारह वैज्ञानिकों ने उनके सिद्धांत को समझा था. परंतु जब प्रोफेसर स्मिथ उसकी व्याख्या करते हैं तो एक भी व्यक्ति नही समझ पाता है.’’
ऐसी ही एक और भी घटना बेहद प्रसिद्ध है. आइंस्टीन के सिद्धांत को मानने वाले शुरुआती वैज्ञानिकों में सर आर्थर स्टेनली एंडिग्टन का नाम विशिष्ट है. उनके बारे में एक भौतिक विज्ञानी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि “सर आर्थर! आप संसार के उन तीन महानतम व्यक्तियों में से एक हैं जो सापेक्षता सिद्धांत को समझते हैं.” यह बात सुनकर सर आर्थर कुछ परेशान हो गए तब उस भौतिक विज्ञानी ने कहा: “इतना संकोच करने की क्या आवश्यकता है सर?” इस पर सर आर्थर ने कहा था: “संकोच की बात तो नही है किन्तु मैं स्वयं सोच रहा था कि तीसरा व्यक्ति कौन हो सकता है?”
टाइम पत्रिका ने आइंस्टीन को बीसवीं सदी का सबसे प्रभावशाली मनुष्य माना. स्पेस-टाइम और ब्रह्मांड सम्बंधी हमारी समझ में विस्तार के साथ भौतिकी की दुनिया में अन्तर्ज्ञान विरोधी अवधारणाओं को उखाड़कर प्रकृति को गहराई से समझने के प्रयास में युगप्रवर्तक आइंस्टीन को हमेशा याद रखा जाएगा।
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