या ख़ुदा पाँव में बे-शक मुझे छाले देना
ग़ज़ल
या ख़ुदा पाँव में बे-शक मुझे छाले देना
रहगुज़र¹ में तू मगर मेरी उजाले देना
भूख इंसान को मजबूर बना देती है
मुफ़लिसी² में भी मुक़द्दर में निवाले देना
जानता है तू हवा से मैं नहीं लड़ सकता
मेरी कश्ती को न तूफ़ाँ के हवाले देना
होंठ सिल देना मेरे दिल में अगर तल्ख़ी हो
बात हो हक़ तो ज़बाँ पर नहीं ताले देना
मुश्किलों में जो ज़माना मुझे छोड़े तन्हा
तू मदद के लिए रहमत के रिसाले³ देना
गुल⁴ हों बदरंग सही हो मगर उनमें ख़ुशबू
जिस्म काले ही सही दिल तो न काले देना
ख़ुश रहेगा ऐ ‘अनीस ‘ अब जो रज़ा⁵ है तेरी
बस इसे जीने के अंदाज़ निराले देना
– अनीस शाह ‘अनीस’
1.रास्ता 2.ग़रीबी 3.सैनिकों का दस्ता 4.फूल 5.इच्छा