५) यार
यार, और रार,
नहीं अब जमाने में,
वक़्त का तक़ाज़ा हैं
यार, और रार जमानें में ।
ऑंखें दिखती नहीं
चश्मों के नीचे,
शीशों के रंग
बदलते हैं जमानें में ।
मौक़ा ढूँढना अब,
रिवाज रहा नहीं
मौक़ा रचना अब,
ब्यापार नया है जमाने में !
नेकी की दुकान
सजती हैं अब,
नगद उधार यह
बहती है जमानें में ।
इन्सान बहकता है,
नयें तरंगों में,
इन्सानियत से दूर,
उसकी पहचान है जमानें में !
नरेन्द्र। ।