यार
आंखें सोए कैसे यार से उसकी हमनवाई है
जागती आंखों में ही तो यार ने जगह बनाई है.?
गुजरते वक़्त के दरारों में लम्स है यार के हाथों का
क्या कीजे जो निगाह उसकी, रूह में मेरे उतर आई है
उसी दिन खुद से हुई थी मैं तो अजनबी पुर्दिल
जिस दिन यार से अनजाने ही मैंने अपनी आंखे मिलाई है
अब खुद में खुद ही नहीं बची मैं थोड़ी भी
मेरे जर्रे जर्रे में यार की आन बसी दिल रूबाई है
~ सिद्धार्थ