यारों
जरा जिन्दगी को ठहरने दो यारों
छुपे अरमाँ को दिल से निकलने दो यारों
बिना ही कहें रूक जाये कभी तो
थमें है कदम फिर से चलने दो यारों
ढलेगी जबानी बुढ़ापे में तेरी कभी तो
मुहब्बत जवाँ दिल को करने दो यारों
उसे रूखसत आज हमसे करो जो
किसी भी घडी क्यों बिलखने दो यारों
भले देख लो आज सपने हसीँ तुम
मगर पाँव को तो जमीं पे तो टिकने दो यारों